श्री गणेश और परशुराम में युद्ध क्यों हुआ था Why Lord Ganesha and Parshuram Fight




Why Lord Ganesha and Parshuram Fight:हिंदू धर्म में सब देवों की पूजा की जाती है लेकिन सबसे पहले गणेश जी की पूजा की जाती है किसी भी कार्य की शुरूआत करने से पहले गणेश जी का नाम लिया जाता है क्योंकि पुराणों में यह कहा गया है कि गणेश जी से बुद्धिमान और सहनशील देव और कोई नहीं है इसलिए सबसे पहले उनकी पूजा की जाती है लेकिन आप को शायद यह पता नहीं होगा कि गणेश जी को और एकदंत क्यों कहा जाता है तो आइए जानते हैं श्री गणेश और परशुराम में युद्ध क्यों हुआ था | Why Lord Ganesha and Parshuram Fight

दरअसल भगवान विष्णु के अवतार परशुराम जी ने घोर तपस्या कर भगवान शंकर को प्रसन्न कर लिया था जिसके बाद भगवान शंकर ने परशुराम को परसु हत्या दिया जिससे वह धरती पर विधि का कार्य कर सकते थे तब परशुराम जी ने धरती पर अपना कार्य पूरा किया और वह भगवान शंकर का धन्यवाद करने के लिए कैलाश पहुंचे परंतु उन का रास्ता गणेश जी ने रोक लिया क्योंकि भगवान शंकर ध्यान मुद्रा में थे और उन्होंने गणेश जी से किसी को भी उनके पास ना आने को कहा था जब परशुराम जी ने गणेश जी से आग्रह किया कि भगवान शंकर उनके आराध्य हैं और उनसे मिले बिना वो वहां से नहीं जाएंगे परंतु गणेश जी ने उनकी कोई बात नहीं सुनी तब परशुराम जी क्रोध में आ गए  और गणेश जी से युद्ध के लिए कहने लगे गणेश जी के पास के सिवा कोई चारा नहीं था तब दोनों में बहुत ही भयंकर युद्ध हुआ Why Lord Ganesha and Parshuram Fight



परशुराम जी ने अपनी हर स्तर का इस्तेमाल किया लेकिन गणेश जी पर किसी भी अस्त्र का कोई असर नहीं हो रहा था तब अंत में परशुराम जी ने भगवान शंकर से वरदान में मिले परसु से गणेश जी पर वार किया गणेश जी उसको रोकने में भी सक्षम थे परंतु वह भगवान शंकर के वरदान का अनादर नहीं करना चाहते थे इसलिए उन्होंने उस अस्त्र का भार अपने एक दांत पर ले लिया और उनका एक दांत खंडित हो गया तब माता पार्वती को पुकारने लगे और माता पार्वती जी गणेश जी का एक दांत टूटे देख कर क्रोधित हो गई क्रोध की अग्नि से वो दुर्गा अवतार में आ गई परशुराम जी भी अपनी भूल समझ चुके थे

Why Lord Ganesha and Parshuram Fight तब गणेश जी ने माता पार्वती को शांत किया उन्होंने कहा कि परशुराम जी का क्रोध में आना स्वाभाविक था क्योंकि उन्होंने उन्हें अपने आराध्य से मिलने से रोका था तब माता पार्वती की शांत हुई और परशुराम जी ने भी अपनी गलती मान ली और उन्होंने कहा कि ऐसी सहनशीलता और आदर उन्होंने किसी और देव में नहीं देखा इतना ध्यान करने के बाद भी ऐसे महान को नहीं पा सके परशुराम जी ने यह कहा कि गणेश जी का खंडित दांत वयर्थ नहीं जाएगा इससे एक महान कथा महाभारत लिखी जाएगी और बाद में गणेश जी ने इसी खंडित दांत से महर्षि व्यास जी के शब्दों को लिखा तब से ही गणेश जी को सबसे सहनशील कहा जाने लगा और उनके एक दांत खंडित होने के कारण उनका नाम एक दन्त पड़ा और उन्हें सबसे प्यारी और विनम्र देव की तरह पूजा जाने लगा .

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