भीष्म पितामह(Bhishma) को कैसे मिली थी महाशक्ति? How did Bhishma get superpower?



महाभारत में एक से बढ़कर एक योद्धाओं ने भाग लिया था। इसमें हर योद्धा की अपनी एक अलग विशेषता थी। इसी महाभारत के युद्ध में भगवान श्री कृष्ण ने अपने सखा अर्जुन को गीता का उपदेश भी दिए थे। इस युद्ध में महाशक्तिशाली भीष्म पितामह(Bhishma) ने भी हिस्सा लिया जिनके शौर्य की गाथा चारों दिशाओं में फैली हुई थी। भीष्म पितामह(Bhishma) के समान कोई और योद्धा नहीं था।

महाभारत के 18 दिनों में 10 दिनों तक सभी ने उनका शौर्य देखा लेकिन आपको शायद भीष्म पितामह(Bhishma) के बारे में पूरी जानकारी नहीं होगी कि वह इतनी शक्तिशाली कैसे बने? तो आइए आज आपको अपने इस पोस्ट में इसी के बारे में बताते हैं।

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दरअसल 33 मुख्य देवो में 8 बासु अपनी पत्नियों के साथ मेरु पर्वत पर आए। तब एक वसु प्रभास की पत्नी ने महर्षि वशिष्ठ की गाय कामधेनु देखी और उन्हें वह इतनी पसंद आई कि उन्होंने प्रभास से उसे चुराने को कहा। तब प्रभास ने उस गाय का हरण कर लिया, लेकिन जब महर्षि वशिष्ठ वापस आए तो वह पूरी बात जान गए। उन्होंने अष्टवसु को श्राप दिया कि उन्हें अब मनुष्य जाति में जन्म लेना होगा। तब सब वसु के माफी मांगने के बाद महर्षि वशिष्ठ ने कहा कि सब को जल्द ही मनुष्य जाति से मुक्ति मिल जाएगी। लेकिन प्रभास को लंबे समय तक मनुष्य जीवन जीना होगा।

उसके बाद एक समय राजा शांतनु शिकार खेलने जंगल में गए थे। लेकिन उन्होंने नदी तट पर एक स्त्री को देखा और उन पर मोहित हो गए। राजा शांतनु ने उसी स्त्री से शादी का प्रस्ताव रखा और वह मान गई, लेकिन उनकी एक शर्त थी कि शांतनु उन्हें किसी काम के लिए नहीं रोकेंगे।



इस तरह इस तरह समय बीतता गया और शांतनु के 7 संताने हुई। लेकिन उस स्त्री ने सभी संतानों को एक-एक करके गंगा नदी में डाल दिया। शांतनु चाह कर भी कुछ नहीं कर पाए। लेकिन जब उस स्त्री ने आठवीं संतान को गंगा नदी में डालना चाहा तो शांतनु ने उसे रोक दिया। राजा शांतनु के पूछने पर उस स्त्री ने बताया कि यह सब संताने वह वसु है, जो महर्षि वशिष्ठ के श्राप के कारण मनुष्य जीवन में आए हैं। और वह स्वयं गंगा है।



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इस तरह देवी गंगा शांतनु के आठवीं संतान समेत गंगा नदी में चली गई। उसके बहुत समय बाद जब एक दिन शांतनु गंगा नदी किनारे घूम रहे थे, तब उन्हें वहां एक दिव्य युवक दिखा जो अपने बाणों से गंगा की धारा को रोक रहा था। तभी वहां गंगा प्रकट हुई, और उन्होंने शांतनु को बताया कि यह उनका ही पुत्र है। उसका नाम देवव्रत है।

इसने महर्षि वशिष्ठ से वेदों का अध्ययन किया है। और परशुराम जी से अस्त्र शस्त्र कला सीखी है। तब गंगा बालक को शांतनु को सौंप कर चली गई। शांतनु ने देवव्रत को राजकुमार बनाया। देवव्रत का नाम ही बाद में भीष्म पड़ा। और उनका पराक्रम अपराजेय था। उन्हें वरदान मिला था कि, उनकी इच्छा मृत्यु होगी यानी उनके प्राण उनकी इच्छा के बिना नहीं निकलेंगे। इस शक्ति से ही भीष्म पितामह(Bhishma) ने महाभारत में प्रलय ला दिया था। और महाभारत के दसवें दिन शिखंडी को आगे कर भीष्म पितामह(Bhishma) पर बाणों के प्रहार किए गए। इस तरह 58 दिन बाणों के स्तर पर रहने के बाद उन्होंने स्वयं ही प्राण त्यागे, और उन्हें मनुष्य जाति से मुक्ति मिली।

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