मुहर्रम पर शायरी - Muharm Shayari Hindi



इस लेख में मै आपको उर्दू मुहर्रम शायरी हिंदी में देने वाली हूँ. मुहर्रम के इस पाक महीने में अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को शायरी भेज हजरत इमाम हुसैन की कुर्बानी और शहादत को याद करें. मुहर्रम इस्लाम का त्यौहार है और इसी महीने इस्लाम धर्म के नव वर्ष की शुरुआत भी होती है. मुहर्रम इस्लाम के चार पवित्र महीने में से एक है. रमजान के बाद मुहर्रम सबसे पाक महीने होता है. ये महिना मुस्लिम समाज के लिए ख़ुशी का नहीं बल्कि दुःख का महिना होता है. जिसके पीछे एक महत्वपूर्ण कहानी छुपी हुई है.


ये कहानी 1400 वर्ष पहले की है जब इराक में एक यजिद नाम का बादशाह रहा करता था जो बहुत ही जालिम था. उसके अब्बा का इंतकाल होने के बाद अल्लाह के रसूल हजरत मोहमाद के परिवार से किसी एक सदस्य को शहंशाह बनना था लेकिन यजीद धोखे से राज-गद्दी पर बैठ खुदको खलीफा घोषित कर दिया था और वो पुरे इराक को अपना घुलाम बनाना चाहता था. हजरत मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन को जब ये बात पता चली तो उन्होंने याजिद के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया था.

लेकिन इमाम हुसैन ने खुदा की राह पर चलते हुए बुराई के खिलाफ करबला की लड़ाई लड़ी थी, जिसमे हुसैन अपने साथियों और परिवार वालों के साथ शहीद हुए थे. जिस महीने हुसैन जी शहीद हुए थे वो महिना मुहर्रम का था, इस घटना की वजह से इस्लाम के लोगों ने इस्लामी कैलेंडर का नया साल मानना छोड़ दिया और बाद में मुहर्रम का महिना दुःख का महिना के रूप में बदल गया. मुहर्रम के दिन जंग में शहीद को दी जाने वाली शहादत के जश्न के रूप में मनाया जाता है और ताजिया सजाकर इसे जाहिर किया जाता है.


“सलाम या हुसैन…
अपनी तकदीर जगाते हैं तेरे मातम से,
खून की राह बिछाते हैं तेरे मातम से,
अपने इज़हार-ए-अकीदत का सलीका ये है,
हम नया साल मनाते हैं तेरे मातम से.”

“वो जिसने अपने नाना का वादा वफ़ा कर दिया..
घर का घर सुपर्द-ए-खुदा कर दिया..
नोश कर लिया जिसने शहादत का जाम..
उस हुसैन इब्ने-अली पर लाखों सलाम…”



“सजदे से करबला को बंदगी मिल गयी…
सब्र से उम्मत को ज़िन्दगी मिल गयी…
एक चमन फातिमा का उजड़ा,
मगर सारे इस्लाम को ज़िन्दगी मिल गयी…”

“यूँ ही नहीं जहाँ में चर्चा हुसैन का,
कुछ देख के हुआ था जमाना हुसैन का,
सर दे के जो जहाँ की हुकूमत खरीद ली,
महँगा पड़ा याजिद को सौदा हुसैन का.”

“करबला को करबला के शहंशाह पर नाज है,
उस नवासे पर मोहम्मद को नाज़ है,
यूँ तो लाखों सर झुके सजदे में लेकिन
हुसैन ने वो सजदा किया जिस पर खुदा को नाज़ है.”

“इमाम का हौसला इस्लाम जगा गया,
अल्लाह के लिए उसका फ़र्ज़ आवाम को धर्म सिखा गया.”

“करबला की उस जमीन पर खून बहा,
कत्त्लेआम का मंजर सजा,
दर्द और दुखों से भरा था जहाँ,
लेकिन फौलादी हौसलों को शहीद का नाम मिला.”

“दिन रोता है रात रोती है,
दिन रोता है रात रोती है..
हर मोमिन की जात रोती है,
जब भी आता है मुहर्रम का महिना,
खुदा की कसम ग़म-ए-हुसैन,
सारी कायनात रोती है…”

“कौन भूलेगा वो सजदा हुसैन का,
खंजरों तले भी सर झुका ना था हुसैन का…
मिट गयी नसल ए याजिद करबला की ख़ाक में,
क़यामत तक रहेगा ज़माना हुसैन का…”

“सर गैर के आगे ना झुकाने वाला,
और नेजे पे भी कुरान सुनाने वाला,
इस्लाम से क्या पूछते हो कौन हुसैन,
हुसैन है इस्लाम को इस्लाम बनाने वाला.”

“एक दिन बड़े गुरुर से कहने लगी ज़मीन,
आया मेरे नसीब में परचम हुसैन का..
फिर चाँद ने कहा मेरे सीने के दाग देख,
होता है आसमान पे भी मातम हुसैन का..”

“मुहर्रम को याद करो वो कुर्बानी,
जो सिखा गया सही अर्थ इस्लामी,
ना डिगा वो हौसलों से अपने,
काटकर सर सिखाई असल जिंदगानी.”

“दश ए बाला को अर्श का जीना बना दिया
दश ए बाला को अर्श का जीना बना दिया
जंगल को मोहम्मद का मदीना बना दिया
हर जर्रे को नजफ़ का नगीना बना दिया
हुसैन तुमने मरने को जीना बना दिया”

“करबला की शहादत इस्लाम बना गई,
खून तो बहा था लेकिन हौसलों की उड़ान दिखा गई…”

“फिर आज हक के लिए जान फ़िदा करे कोई,
वफ़ा भी झूम उठे यूँ वफ़ा करे कोई,
नमाज़ 1400 सालों से इंतज़ार में है,
हुसैन की तरह मुझको अदा करे कोई..”


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