विश्वकर्मा पूजा विधि, आरती और इसे क्यों मनाया जाता है ?

आज इस लेख से आपको विश्वकर्मा पूजा विधि, आरती और इसे क्यों मनाया जाता है? के बारे में सभी जानकारी दी जाएगी. हिन्दू धर्म के लोगों के लिए विश्वकर्मा बहुत ही महत्वपूर्ण पूजा है. विश्वकर्मा पूजा के दिन ही भगवन विश्वकर्मा का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन को विश्वकर्मा जयंती भी कहा जाता है. ये त्यौहार पुरे देश में जोरो शोरो से मनाया जाता है.

हिन्दू धर्म में विश्वकर्मा जी सृष्टी के निर्माण करने वाले देवता है. भारत में इन्हें साधन, औजार, युक्ति और निर्माण के देवता के रूप में पूजा जाता है. भगवान विश्वकर्मा को दुनिया का पहला इंजीनियर और वास्तुकार माना जाता है और यही वजह है कि विश्वकर्मा पूजा के शुभ अवसर पर देश भर में उद्योगों और फेक्ट्रिायों में हर तरह की मशीनों और औजारों की सफाई कर उनकी पूजा की जाती है और मनुष्य अपने घर के सभी वाहनों की भी पूजा करते हैं क्यूंकि उन में भी मशीने लगी हुयी रहती हैं.

श्री विश्वकर्मा जयंती



एक कथा के अनुसार संसार की रचना के शुरुआत में भवान विष्णु सागार में प्रकट हुए तब विष्णु जी के नाभि-कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुयी. ब्रह्मा जी के पुत्र का नाम धर्म था. धर्मं का विवाह वास्तु नाम की स्त्री से हुआ. धर्म और वास्तु के सात पुत्र हुए. उनके सातवें पुत्र का नाम वास्तु रखा गया. वास्तु शिल्पशास्त्र में निपुण था. वास्तु के पुत्र का नाम विश्वकर्मा था , जिन्होंने आगे चल कर पुरे संसार को आकृति दी. अपने पिता के तरह ही विश्वकर्मा जी वास्तुशास्त्र में माहिर थे जिसके कारण उन्हें वास्तुशास्त्र का जनक भी कहा जाता है. इस तरह भगवन विश्वकर्मा जी का जन्म हुआ.

विश्वकर्मा पूजा किस लिए मनाया जाता है


पौराणिक कथाओं के वर्णन में ये लिखा हुआ है की भगवान विश्वकर्मा ने पूरे ब्रह्माण्ड का निर्माण किया है. पौराणिक युग में इस्तेमाल किये जाने वाले हथियारों को भी विश्वकर्मा ने ही बनाया था जिसमे भगवान इंद्रा का हथियार “वज्र” भी शामिल है, जिसे इन्होने महर्षि दधिची की हड्डियों से बनाया था. भगवान विश्वकर्मा को शिल्प में गज़ब की महारथ हासिल थी जिसके कारण इन्हें “शिल्पकला का जनक” भी माना जाता है.

विश्वकर्मा पूजा इतिहास– भगवान् विश्वकर्मा जी ने ही रावण के सोने की लंका का संरचना किया था. इसके पीछे की असली कहानी ये थी की महादेव शिव जी ने अपने और देवी पार्वती जी के लिए एक महल बनाने का दैत्वा विश्वकर्मा जी को सौंपा था. शिव जी के इस निवेदन को सुनकर विश्वकर्मा जी अति प्रसन्न थे और उन्होंने महादेव के लिए सोने की लंका बनाई. गृहप्रवेश के उत्सव के दिन शिव जी ने रावण को धार्मिक क्रिया और गृह की पूजा करने के लिए निमंत्रण दिया था. सोने से बना महल को देख रावण की आँखें खुली की खुली रह गयी और महल की शान और चका-चौंध ने रावण की लालसा को जन्म दिया. पूजा पूर्ण होने के बाद जब शिव जी ने रावण से दक्षिणा के रूप में कुछ भी उपहार मांगने का अवसर दिया तो लालची रावण ने दक्षिणा में सोने का महल ही माँग लिया. शिव जी को मजबूरन दक्षिणा के रूप में रावण को महल सौंपना पड़ा तबसे ही सोने की लंका रावण की हो गयी थी.

इसी तरह ऐसा ही बहुत से लोकप्रिय पौराणिक भवन और महल है जो भगवन विश्वकर्मा ने देवी देवताओं के लिए बनाएं है. उनमे से “इन्द्रप्रस्थ” है जो महाभारत के पांडवों का भव्य महल था, “द्वारका” जो भगवन श्री कृष्णा की नगरी है उसका भी निर्माण किया था, पृथ्वी और स्वर्ग लोक भी बनाया है और पुष्पक विमान का निर्माण भी इन्होने किया. इसके साथ साथ देवों के दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तुएं भी विश्वकर्मा द्वारा ही बनाई गयी है जैसे- कर्ण का कुण्डल, विष्णु भगवन का सुदर्शन चक्र. शंकर भगवन का त्रिशूल और यमराज का कालदंड इत्यादि.

यही वजह है की भगवन विश्वकर्मा जी को प्रथम इंजिनियर और मशीन का देवता कहा जाता है. इसलिए लोहे के कारखानों, फैक्ट्रीयों के मशीनों, वाहनों के कारखानों और computers के दुकानों में भी भगवान् विश्वकर्मा की मूर्ति स्थापित कर उनकी पूजा की जाती है. औजारों की विशेष यूप से पूजा की जाती है क्यूंकि बिना इनके हम कोई भी चीज बना नहीं सकते है. और ऐसा मानना है की भगवन विश्वकर्मा की पूजा करने से शिल्प कला का विकाश होता है इसलिए इनकी पूजा की जाती है.

विश्वकर्मा पूजा विधि

विश्वकर्मा की पूजा विधि इस तरह की जाती है- विश्वकर्मा पूजा के दिन भगवन विश्वकर्मा की प्रतिमा को विराजित कर उनकी पूजा अर्चना की जाती है. इस दिन सभी कार्यस्थलों को फूलों से सजाया जाता है. इस दिन भगवान् विश्वकर्मा के वाहन “हाथी” की पूजा भी की जाती है. पूजा के लिए व्यक्ति को प्रातः सुबह उठकर सबसे पहले स्नान कर मूर्ति की स्थापना करना चाहिए. उसके बाद कुछ देर भगवान् विष्णु का ध्यान करें. अपने दाहिने हाथ में फुल और अक्षत लेकर मंत्र पढ़ें-

विश्वकर्मा पूजा मंत्र

विश्वकर्मा पूजा के समय विश्वकर्मा वैदिक मंत्र का ये जाप करना चाहिए-

“ओम आधार शक्त्पे नम:
ओम कमयि नम:
ओम अनन्तम नम:
प्रिथ्विये नम: “


इसके बाद अक्षत को चारों और छिड़क दें और फूल को जल में छोड़ दें. हाथ में मौली या कलावा बांधे और साफ़ जमीन पर अष्टदल कमल बनाएं और उसी पर जल डालें, सात अनाज रखें. इसके बाद पांच पेड़ों के पत्ते, सैट प्रकार की मिटटी, सुपारी, दक्षिणा कलश में डालकर कपडे से कलश को ढक दें. भगवान् की आरती करें और पूजा करते समय दीप, धुप, पुष्प, गंध, सुपारी आदि का प्रयोग करें और भगवन को प्रसाद का भोग लगायें. पूजा करने के बाद अपने व्यवसाय से जुड़े औजारों और यंत्रों को आगे जल, रोली, अक्षत, फूल और मिठाई से उनकी पूजा करें और उनको तिलक लगायें. अंत में हवन कर सभी लोगों को प्रसाद बाँटें.

विश्वकर्मा पूजा आरती गीत

यहाँ पर मैंने दो गीत लिखें हैं. विश्वकर्मा पूजा आरती करते वक़्त आप इनमे से किसी एक गीत का उच्चारण कर सकते हैं. विश्वकर्मा भगवान की आरती करते वक़्त ये विश्वकर्मा पूजा का गाना गायें-


“हम सब उतारे आरती तुम्हारी हे विश्वकर्मा, हे विश्वकर्मा
युग-युग से हम हैं तेरे पुजारी, हे विश्वकर्मा…
मूढ़ अज्ञानी नादान हम है, पूजा विधि से अनजान हम हैं.
भक्ति का चाहते वरदान हम हैं, हे विश्वकर्मा…
निर्बल हैं तुझसे बल मांगते हैं, करुणा का प्यास से जल मांगते हैं.
श्रद्धा का प्रभु जी फ़ल मांगते हैं, हे विश्वकर्मा….
चरणों से हमको लगाये ही रखना, छाया में अपने छुपाये ही रखना.
धर्म का योगी बनाये ही रखना, हे विश्वकर्मा…
सृष्टी में तेरा है राज बाबा, भक्तों की रखना तुम राज़ बाबा.
धरना किसी का न मोहताज़ बाबा, हे विश्वकर्मा…
धन, वैभव, सुख-शांति देना, भय, जन-जंजाल से मुक्ति देना.
संकट से लड़ने की शक्ति देना, हे विश्वकर्मा…
तुम विश्वपालक, तुम विश्वकर्ता, तुम विश्वव्यापक तुम कष्ट हर्ता.
तुम ज्ञान्दानी भण्डार भर्ता, हे विश्वकर्मा…”


विश्वकर्मा पूजा गाना 2019

“जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा ।
सकल सृष्टि के करता, रक्षक स्तुति धर्मा ।।
आदि सृष्टि मे विधि को श्रुति उपदेश दिया ।
जीव मात्रा का जाग मे, ज्ञान विकास किया ।।
ऋषि अंगीरा ताप से, शांति नहीं पाई ।
रोग ग्रस्त राजा ने जब आश्रया लीना ।
संकट मोचन बनकर डोर दुःखा कीना ।।
जय श्री विश्वकर्मा.
जब रथकार दंपति, तुम्हारी टर करी ।
सुनकर दीं प्रार्थना, विपत हरी सागरी ।।
एकानन चतुरानन, पंचानन राजे ।
त्रिभुज चतुर्भुज दशभुज, सकल रूप सजे ।।
ध्यान धरे तब पद का, सकल सिद्धि आवे ।
मन द्विविधा मिट जावे, अटल शक्ति पावे ।।
श्री विश्वकर्मा की आरती जो कोई गावे ।
भाजात गजानांद स्वामी, सुख संपाति पावे ।।

जय श्री विश्वकर्मा.“

विश्वकर्मा पूजा कब है?

सभी कार्यालयों और शिल्पकारों के मन में यही सवाल रहता है विश्वकर्मा पूजा कब है 2019 में? हर साल विश्वकर्मा पूजा कन्या संक्रांति को मनाई जाती है. यदि इस दिन पुरे विधि-विधान से पूजा की जाये तो सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और आने वाले दिनों में व्यापर की प्रगति होती है और धन-सम्प्रदाय में अपार वृद्धि होती है. भाद्रपद माह में इस वर्ष विश्वकर्मा पूजा 2019 में 17 September को मनाया जायेगा. विश्वकर्मा पूजा के अवसर पर सभी कलाकारों, शिल्पकारों, मिस्त्रियों, लोहार, वेल्डर, फैक्ट्री के कर्मचारियों और औध्योगिक घरानों द्वारा की जाती है. लेकिन देश के कुछ भागों में इसे दीपावली के दुसरे दिन भी मनाया जात है.

विश्वकर्मा जयंती 2019 भारत के इन राज्यों में भक्ति पूर्ण उत्साह और जोश के साथ मनाया जायेगा- कर्नाटका, आसाम, पश्चिम-बंगाल, बिहार, झारखण्ड, ओडिशा, उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा इत्यादि.

विश्वकर्मा पूजा क्यों मनाया जाता है?

विश्वकर्मा भगवान को निर्माण और सृजन का देवता कहा जाता है इसलिए विश्वकर्मा जयंती के दिन विश्वकर्मा की पूजा जो भी भक्त सच्चे मन से करता है उसकी सभी मनोकामनाएं और इच्छा पूरा हो जाता है. कारोबार में कभी घटा नहीं होता बल्कि रोज़ के रोज़ व्यापार बढ़ता जाता है. नौकरी में मान सम्मान मिलता है. घर में धन सम्पदा की कोई कमी नहीं रहती है. सारा जीवन सुखी हो जाता है. ऐसा माना जाता है की जिस फैक्ट्री के मालिक भगवान् विश्वकर्मा पूजा जयंती को धूम-धाम से नहीं मानते उन्हें पुरे साल समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इसलिए भगवान का आशीर्वाद हम पर सदैव बना रहे इसके लिए इनकी पूजा पुरे रीती रिवाज और हर्षौल्लास के साथ किया जाता है.



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