भृगु ऋषि ने क्यों मारी भगवान विष्णु की छाती में लात Mythological Stories in Hindi



Why Rishi Bhrigu Kicked Lord Vishnu Mythological Stories in Hindi: पौराणिक समय में एक बहुत ही महान ऋषि हुए थे जिनका नाम था महर्षि भृगु। महर्षि भृगु की महानता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है की उनके द्वारा रचित ‘भृगु संहिता’ आज भी हमारे लिए अनुकरणीय हैं। भृगु संहिता की मदद से किसी भी इंसान का 3 जन्मों का फल निकाला जा सकता है। साथ ही ब्रह्मांड को नियंत्रित करने वाले सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बृहस्पति, शुक्र, शनि आदि नक्षत्रों की इस ग्रंथ के माध्यम से गणना की जाती है। परंतु आज हम Mythological Stories in Hindi में महर्षि भृगु के जीवन काल से जुड़ी एक ऐसी घटना का के बारे में आपको बताने जा रहे हैं जो महर्षि भृगु और त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु, महेश से संबंधित है।

Mythological Stories in Hindi पौराणिक कथाओं के अनुसार महर्षि भृगु ने भगवान विष्णु के छाती पर अपने पैरों से प्रहार कर दिया था। लेकिन ऐसा क्या हुआ था कि महर्षि भृगु को इतना बढ़ा पाप करना पड़ा? यह हम आपको अपने इस पोस्ट ‘Mythological Stories in Hindi’ में बताते हैं।

शिव का वो अवतार जिससे सारी दुनिया कांप गई
श्री पद पुराण में संघार-खंड में वर्णित कथा के अनुसार मंदराचल पर्वत पर हो रहे यज्ञ में ऋषि मुनियों में इस बात पर विवाद छिड़ गया की त्रिदेव यानी भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु, और भगवान महेश में से सबसे श्रेष्ठ देव कौन है। इस विवाद के अंत में यह निष्कर्ष निकला कि जो देव सत्वगुणी होंगे, वही श्रेष्ठ कहलाएंगे। इस काम के लिए भृगु ऋषि को नियुक्त किया गया।

त्रिदेव की परीक्षा लेने के क्रम में भृगु ऋषि सबसे पहले ब्रह्मलोक पहुंचे। और वहां जाकर वह बिना कारण ही ब्रह्मा जी पर क्रोधित हो गए कि आप सभी ने मेरा अनादर किया है। यह देख ब्रह्मा जी को भी क्रोध आ गया और उन्होंने कहा कि तुम अपने पिता से ही आदर की आशा रखते हो। भृगु तुम कितने भी बड़े विद्वान क्यों ना हो जाओ तुम्हें अपनों से बड़ों का आदर करना नहीं भूलना चाहिए।

इस पर भृगु ऋषि ने कहा क्षमा कीजिए भगवन लेकिन आप क्रोधित हो गए। मैं तो सिर्फ यह देख रहा था की आपको क्रोध आता है या नहीं।

इसके बाद भी भृगु ऋषि महादेव की परीक्षा लेने के लिए कैलाश पर्वत की ओर चल दिए। कैलाश पहुंचकर भृगु ऋषि को पता चला की भगवान शिव अपने ध्यान में लीन हैं। उन्होंने नंदी से कहा कि जाओ मेरे आने की सूचना भगवान शिव को दो। नंदी ने कहा महर्षि मैं ऐसा नहीं कर सकता, भगवान शिव क्रोधित हो जाएंगे। इस पर भिर्गु ऋषि स्वयं उसी स्थल पर चले गए जहां भगवान शिव ध्यान कर रहे थे। वहां पहुंचकर महर्षि भृगु शिव का आवाहन करने लगे। और बोले कैलाश हो या कहीं भी ऋषि-मुनियों के लिए तो आप का द्वार सदैव खुला रहता है। महर्षि भृगु के आवाज से भगवान शिव का ध्यान भंग हो गया और वह क्रोधित हो गए। Mythological Stories in Hindi

क्यों हुआ था शिव और कृष्ण में एक भयानक युद्ध

भगवान शिव ने कहा कि भृगु तुम्हारी मौत तुम्हें यहां तक ले आई है। आज तुम्हारी मौत निश्चित है। मैं अभी तुम्हें भस्म कर देता हूं। तभी वहां माता पार्वती आ गई और भगवान शिव से भृगु ऋषि की प्राणों की रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगी। माता पार्वती ने भगवन शिव को यह भी बताया कि इसमें भृगु ऋषि की कोई गलती नहीं है। वह तो बस पृथ्वी के सभी ऋषि-मुनियों का मार्ग दर्शन करना चाहते हैं। यह सब जानकर भगवान शिव का क्रोध शांत हो गया। और फिर उन्होंने भृगु ऋषि को बताया कि क्रोध तो मेरा स्थाई भाव है।

इसके बाद भृगु ऋषि भगवान विष्णु की परीक्षा लेने के लिए उनके धाम बैकुंठ पहुंचे। वहां पहुंच कर उन्होंने देखा की भगवान विष्णु निद्रा की अवस्था में लेटे थे। भृगु ऋषि को लगा कि उन्हें आता देख जानबूझकर भगवान विष्णु सोने का नाटक कर रहे हैं। तब उन्होंने अपने पैरों से भगवान विष्णु के छाती पर आघात किया। भगवान विष्णु की निद्रा भंग हो गई। भगवान श्री हरी विष्णु उठते ही महर्षि भृगु के पैर पकड़ लिए और कहा, कि महर्षि आपके पैरों को कहीं चोट तो नहीं लगी। महर्षि भृगु यह देखकर लज्जित हुए और प्रसन्न भी।

इसके बाद महर्षि भृगु ने भगवान श्री हरि विष्णु को त्रिदेव में श्रेष्ठ सत्वगुणी घोषित कर दिया।

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