महाभारत के योद्धाओं के ये 7 गुप्त रहस्य बहुत ही काम लोग ही जानते होंगे
महर्षि वेदव्यास द्वारा लिखा गया महाभारत इतना विशाल और रहस्यमय है की इसकी संपूर्ण जानकारी आज तक शायद ही किसी को होगी। हर किसी के मन में महाभारत की कहानी जानने की इच्छा होती है। इसे कोई जितना पड़ता है वह इसके बारे में और उतना ही और ज्यादा जानना चाहता है। महाभारत में हर पात्र की अपनी एक अलग कहानी है। महाभारत ग्रंथ, ज्ञान के साथ-साथ बहुत सरे अनसुलझे रहस्योँ से भरा हुआ है। तो चलिए अपने आज के पोस्ट” Secret of Mahabharat in Hindi” में हम आप सबको महाभारत युद्ध में लड़ाई करने वाले योद्धाओं से जुड़े का 7 ऐसे रहस्य(Secret of Mahabharat in Hindi) के बारे में बताते हैं, जिनके बारे में बहुत ही कम लोग जानते होंगे।
पहला रहस्य – हर योद्धा किस न किसी का अवतार या दिव्य पुत्र था
भगावान श्रीकृष्ण विष्णु के अवतार थे तो बलराम शेषनाग के अंश थे। आठ वसुओं में से एक ‘द्यु’ नामक वसु ने ही भीष्म के रूप में जन्म लिया था। देवगुरु बृहस्पति ने ही द्रोणाचार्य के रूप में जन्म लिया था। अश्वत्थामा रुद्र के अंशावतार थे। दुर्योधन कलियुग का तथा उसके 100 भाई पुलस्त्य वंश के राक्षस के अंश थे। सूर्यदेव के पुत्र कर्ण, इंद्र के पुत्र अर्जुन, पवन के पुत्र भीम, धर्मराज के पुत्र युधिष्ठिर और 2 अश्विनीकुमारों नासत्य और दस्त्र के पुत्र नकुल और सहदेव थे।
रुद्र के एक गण ने कृपाचार्य के रूप में जन्म लिया। द्वापर युग के अंश से शकुनि, अरिष्टा के पुत्र हंस नामक गंधर्व ने धृतराष्ट्र तथा पाण्डु के रूप में जन्म लिया। सूर्य के अंश धर्म ही विदुर के नाम से प्रसिद्ध हुए। कुंती और माद्री के रूप में सिद्धि और धृतिका का जन्म हुआ था। मति का जन्म राजा सुबल की पुत्री गांधारी के रूप में हुआ था। राजा भीष्मक की पुत्री रुक्मणी के रूप में लक्ष्मीजी व द्रौपदी के रूप में इंद्राणी उत्पन्न हुई थीं। अभिमन्यु चंद्रमा के पुत्र वर्चा का अंश था।
मरुतगण के अंश से सात्यकि, द्रुपद, कृतवर्मा व विराट का जन्म हुआ था। अग्नि के अंश से धृष्टधुम्न व राक्षस के अंश से शिखंडी का जन्म हुआ था। विश्वदेवगण द्रौपदी के पांचों पुत्र प्रतिविन्ध्य, सुतसोम, श्रुतकीर्ति, शतानीक और श्रुतसेव के रूप में पैदा हुए थे।
दानवराज विप्रचित्ति जरासंध व हिरण्यकशिपु शिशुपाल का अंश था। कालनेमि दैत्य ने ही कंस का रूप धारण किया था।
इंद्र की आज्ञानुसार अप्सराओं के अंश से 16 हजार स्त्रियां उत्पन्न हुई थीं।
दूसरा रहस्य – विचित्र शक्तियों से संपन्न योद्धा
1 सहदेव भविष्य में होने वाली हर घटना को पहले से ही जान लेते थे।
2 बर्बरीक दुनिया का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे। बर्बरीक के लिए तीन बाण ही काफी थे जिसके बल पर वे कौरवों और पांडवों की पूरी सेना को समाप्त कर सकते थे। लेकिन श्रीकृष्ण युद्ध के पहे ही उसे भी ठीकाने लगा दिया। Secret of Mahabharat in Hindi
3 संजय आज के दृष्टिकोण से वे टेलीपैथिक विद्या में पारंगत थे। कहते हैं कि गीता का उपदेश दो लोगों ने सुना, एक अर्जुन और दूसरा संजय।
4 गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा हर विद्या में पारंगत थे। वे चाहते तो पहले दिन ही युद्ध का अंत कर सकते थे, लेकिन कृष्ण ने ऐसा कभी होने नहीं दिया।
5 कर्ण से यदि कवच-कुंडल नहीं हथियाए होते, यदि कर्ण इन्द्र द्वारा दिए गए अपने अमोघ अस्त्र का प्रयोग घटोत्कच पर न करते हुए अर्जुन पर करता तो आज भारत का इतिहास और धर्म कुछ और होता।
6 भीम में हजार हाथियों का बल था। युद्ध में भीम से ज्यादा शक्तिशाली उनका पुत्र घटोत्कच ही था। घटोत्कच का पुत्र बर्बरीक था।
7 माना जाता है कि कद-काठी के हिसाब से भीम पुत्र घटोत्कच इतना विशालकाय था कि वह लात मारकर रथ को कई फुट पीछे फेंक देता था और सैनिकों तो वह अपने पैरों तले कुचल देता था।
8 शांतनु-गंगा के पुत्र भीष्म का नाम देवव्रत था। उनको इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था।
9 दुर्योधन का शरीर वज्र के समान कठोर था, जिसे किसी धनुष या अन्य किसी हथियार से छेदा नहीं जा सकता था। लेकिन उसकी जांघ श्रीकृष्ण के छल के कारण प्राकृतिक ही रह गई थी।
10 जरासंघ का शरीर दो फाड़ करने के बाद पुन: जुड़ जाता था। तब श्रीकृष्ण ने भीम को इशारों में समझाया की दो फाड़ करने के बाद दोनों फाड़ को एक दूसरे की विपरित दिशा में फेंक दिया जाए।
तीसरा रहस्य – महाभारत में न तो कौरवों ने युद्ध लड़ा और न पांडवों ने
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि महाभारत में न तो कौरवों ने युद्ध लड़ा और न ही पांडवों ने। कौरव उसे कहते हैं जो कुरुवंश का हो। कुरुवंश के अंतिम योद्धा भीष्म ही थे। धतराष्ट्र के पुत्र कौरव और पांडु के पुत्र पांडव कहलाए जबकि पांडु का कोई पुत्र नहीं था। पांडु पत्नी कुंती और माद्री ने देवताओं का आह्वान किया था जिससे उन्हें पांच पुत्र उत्पन्न हुए थे। दूसरी ओर 100 कौरवों का जन्म वेद व्यास की कृपा से हुआ था। यह भी विदित हो कि वेद व्यास के के पिता की कृपा से ही अंबिका से धृतराष्ट्र और अंबालिका से पांडु का जन्म हुआ जबकि एक दासी से विदुर का जन्म हुआ था।
चौथा रहस्य – रहस्यमयी जन्म
महाभारत में किसी भी व्यक्ति का सामान्य रूप में जन्म नहीं हुआ। श्रीकृष्ण का जन्म जहां कारावास में बहुत कठिन परिस्थितियों में हुआ। वहीं, उससे पूर्व भीष्म का जन्म गंगा की शर्त के उल्लंघन स्वरूप हुआ। भीष्म ने जब ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा ले ली तो वंश को आगे बढ़ाने का संकट उत्पन्न हुआ। शांतनु की दूसरी पत्नीं सत्यवती के दो पुत्र हुए। इसमें से जीवित बचे विचित्रवीर्य की 2 पत्नियां अम्बिका और अम्बालिका ने निगोद द्वारा अम्बिका से धृतराष्ट्र, अम्बालिका से पाण्डु और दासी से विदुर का जन्म हुआ।
इसी तरह धृतराष्ट्र और पाण्डु को जब कोई पुत्र उत्पन्न नहीं हुआ तो फिर से यही वेदव्यास काम आए। अब आप सोचिए इन्हीं 2 पुत्रों में से एक धृतराष्ट्र के यहां जब कोई पुत्र नहीं हुआ तो वेदव्यास की कृपा से ही 99 पुत्र और 1 पुत्री का जन्म हुआ। दूसरी ओर पांडु की दो पत्नियां कुंती और माद्री थीं। दोनों से ही पांडु पुत्र उत्पन्न नहीं कर सके। तब कुंती ने क्रमश: धर्मराज, इन्द्र और पवनदेव का आह्वान किया तो युद्धिष्ठिर, अर्जुन भीम उत्पन्न हुए। उसी तरह माद्री ने दो अश्विन कुमारों का आह्वान किया तो उनसे नकुल और सहदेव उत्पन्न हुए।
इसी तरह द्रौपदी का जन्म भी एक रहस्य ही है। कहते हैं कि उसका असली नाम यज्ञसेनी है। यज्ञसेनी इसलिए कि वह यज्ञ से उत्पन्न हुई थी। दौपदी नाम महाराज द्रुपद की पुत्री होने के कारण था। इसी तरह गौतम ऋषि के पुत्र शरद्वान और शरद्वान के पुत्र कृपाचार्य का जन्म भी एक रहस्य ही है। कृपाचार्य की माता का नाम नामपदी था। नामपदी एक देवकन्या थी। इन्द्र ने शरद्वान को साधना से डिगाने के लिए नामपदी को भेजा था। देवकन्या नामपदी (जानपदी) के सौंदर्य के प्रभाव से शरद्वान इतने कामपीड़ित हो गए कि उनका वीर्य स्खलित होकर एक सरकंडे पर गिर पड़ा। वह सरकंडा दो भागों में विभक्त हो गया जिसमें से एक भाग से कृप नामक बालक उत्पन्न हुआ और दूसरे भाग से कृपी नामक कन्या उत्पन्न हुई। यह कृप ही कृपाचार्य कहलाए।
महर्षि भारद्वाज मुनि का वीर्य किसी द्रोणी (यज्ञकलश अथवा पर्वत की गुफा) में स्खलित होने से जिस पुत्र का जन्म हुआ, उसे द्रोण कहा गया। ऐसे भी उल्लेख है कि भारद्वाज ने गंगा में स्नान करती घृताची को देखा भारद्वाज ने गंगा में स्नान करती घृताची को देखा और उसे देखकर वे आसक्त हो गए जिसके कारण उनका वीर्य स्खलन हो गया जिसे उन्होंने द्रोण (यज्ञकलश) में रख दिया। बाद में उससे उत्पन्न बालक द्रोण कहलाया।
पांचवां रहस्य – महाभारत के ये उलझे हुए रिश्ते
महाभारत में द्रौपदी ही एकमात्र ऐसी स्त्री थीं जिसने पांच पुरुषों को अपना पति बनाया था। महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण के सखा थे अर्जुन। लेकिन अर्जुन ने जब श्रीकृष्ण की बहिन से विवाह किया तो वे उनके जीजा भी बन गए थे। श्रीकृष्ण का अर्जुन से ही नहीं बल्कि दुर्योधन से भी करीबी रिश्ता था। कृष्ण और जामवंती के पुत्र साम्ब ने दुर्योधन की पुत्री लक्ष्मणा से विवाह किया था। इस तरह दुर्योधन और श्रीकृष्ण दोनों एक दूसरे के समधी थे। अर्जुन और सुभद्रा के पुत्र अभिमन्यु की पत्नी वत्सला बलराम की बेटी थी। अभिमन्यु का एक विवाह महाराज विराट की पुत्री उत्तरा से भी हुआ था। भगवान श्रीकृष्ण की आठ पत्नियां में से एक अवंति के राजा जयसेन की बेटी मित्रविन्दा थी। पौराणिक मान्यता अनुसार मित्रविन्दा उनकी बुआ की बेटी थी।
छठा रहस्य – एक रात के लिए जी उठे सभी योद्धा
ऐसी मान्यता है कि महाभारत युद्ध में मारे गए सभी शूरवीर जैसे कि भीष्म, द्रोणाचार्य, दुर्योधन, अभिमन्यु, द्रौपदी के पुत्र, कर्ण, शिखंडी आदि एक रात के लिए पुनर्जीवित हुए थे। यह घटना महाभारत युद्ध खत्म होने के 15 साल बाद घटित हुई थी।
यह उस समय की बात है जब धृतराष्ट्र, कुंती, विदुर, गांधारी और संजय वन में रहते थे। वहां विदुरजी के प्राण त्यागने के बाद धृतराष्ट्र के आश्रम में महर्षि वेदव्यास आए। महर्षि वेदव्यास ने धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती से कहा कि आज मैं तुम्हें अपनी तपस्या का प्रभाव दिखाऊंगा। तुम्हारी जो इच्छा हो वह मांग लो।
तब धृतराष्ट्र व गांधारी ने युद्ध में मृत अपने पुत्रों तथा कुंती ने कर्ण को देखने की इच्छा प्रकट की। द्रौपदी आदि ने कहा कि वे भी अपने परिजनों को देखना चाहते हैं। महर्षि वेदव्यास ने कहा कि ऐसा ही होगा। महर्षि वेदव्यास के कहने पर सभी गंगा तट पर एकत्रित हो गए और रात होने का इंतजार करने लगे।
रात होने पर महर्षि वेदव्यास ने गंगा नदी में प्रवेश किया और पांडव व कौरव पक्ष के सभी मृत योद्धाओं का आवाहन किया। थोड़ी ही देर में सभी योद्धा प्रकट हो गए महर्षि वेदव्यास ने धृतराष्ट्र व गांधारी को दिव्य नेत्र प्रदान किए। अपने मृत परिजनों को देख सभी के मन में हर्ष छा गया। सारी रात अपने मृत परिजनों के साथ बिताकर सभी के मन में संतोष हुआ। अपने मृत पुत्र, भाई, पतियों और अन्य संबंधियों से मिलकर सभी का संताप दूर हो गया। इस प्रकार वह अद्भुत रात समाप्त हो गई।
सातावं रहस्य – युद्ध के बाद बचे हुए लोगों का क्या हुआ?
लाखों लोगों के मारे जाने के बाद लगभग 24,165 कौरव सैनिक लापता हो गए थे जबकि महाभारत के युद्ध के पश्चात कौरवों की तरफ से 3 और पांडवों की तरफ से 15 यानी कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे थे। युधिष्ठिर ने युद्ध के मैदान में ही सभी योद्धाओं का अंतिम क्रिया-कर्म करवाया था।
महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद कृतवर्मा, कृपाचार्य, युयुत्सु, अश्वत्थामा, युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव, श्रीकृष्ण, सात्यकि आदि जीवित बचे थे। इसके अलावा धृतराष्ट्र, द्रौपदी, गांधारी, विदुर, संजय, बलराम, श्रीकृष्ण की पत्नियां आदि भी जीवित थे।
युद्ध के बाद शाप के चलते श्रीकृष्ण के कुल में भी आपसी युद्ध शुरू हुआ जिसमें श्रीकृष्ण के पुत्र आदि सभी मारे गए। बलराम ने यह देखकर समुद्र के किनारे जाकर समाधि ले ली। श्रीकृष्ण को प्रभाष क्षेत्र में एक बहेलिये ने पैर में तीर मार दिया जिसे कारण बनाकर उन्होंने देह त्याग दी। कृष्ण कुल का एकमात्र पुरुष वृज बचा था।
धृतराष्ट्र और गांधारी ने पांडवों के साथ रहते-रहते 15 साल गुजार दिए तब एक दिन भीम ने धृतराष्ट्र व गांधारी के सामने कुछ ऐसी बातें कह दी जिसे सुनकर उनके मन में बहुत शोक हुआ और दोनों वन चले गए। उनके साथ गांधारी, कुंती, विदुर और संजय भी वन में रहकर तप करने लगे। विदुर और संजय इनकी सेवा में लगे रहते और तपस्या किया करते थे। एक दिन युधिष्ठिर के वन में पधारने के बाद विदुर ने देह छोड़कर अपने प्राणों को युधिष्ठिर में समा दिया।
फिर एक दूसरे दिन जब धृतराष्ट्र और अन्य गंगा स्नान कर आश्रम आ रहे थे, तभी वन में भयंकर आग लग गई। दुर्बलता के कारण धृतराष्ट्र, गांधारी व कुंती भागने में असमर्थ थे इसलिए उन्होंने उसी अग्नि में प्राण त्यागने का विचार किया और वहीं एकाग्रचित्त होकर बैठ गए। इस प्रकार धृतराष्ट्र, गांधारी व कुंती ने अपने प्राणों का त्याग कर दिया। संजय ने यह बात तपस्वियों को बताई और वे स्वयं हिमालय पर तपस्या करने चले गए। धृतराष्ट्र, गांधारी व कुंती की मृत्यु का समाचार जब महल में फैला तो हाहाकार मच गया। तब देवर्षि नारद ने उन्हें धैर्य बंधाया। युधिष्ठिर ने विधिपूर्वक सभी का श्राद्ध-कर्म करवाया और दान-दक्षिणा देकर उनकी आत्मा की शांति के लिए संस्कार किए।
अंत में युधिष्ठिर अपना राजपाठ परीक्षित को सौंप कर द्रौपदी सहित अपने चारों भाइयों के साथ सशरीर स्वर्ग चले गए। स्वर्ग के मार्ग में युधिष्ठिर की एक मात्र जीवित बचे बाकी सभी एक-एक करके गिरते गए और मरते गए। अंत में युधिष्ठिर ही जीवीत ही स्वर्ग पहुंचे।
तो दोस्तों उम्मीद करते हैं आप सभी को हमारा यह पोस्ट“Seven Secret of Mahabharat in Hindi” पसंद आया होगा, अगर आपको हमारा यह पोस्ट पसंद आया तो आप इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर कीजिए, ताकि यह जानकारी और भी लोगों तक पहुंच सके। और ऐसे ही पौराणिक कथा और ज्ञानबर्धक लेख को पढ़ने के लिए हमारे ब्लॉग के साथ जुड़े रहिये।धन्यवाद॥
टिप्पणी पोस्ट करा